शहीदों की चिताओ पर लगंगे हर बरस मेले, वतन पर मिटने वालों का यही आखरी निशान होगा. आज ही के दिन २३ मार्च १९३१ को ब्रिटिश सरकार ने भगत सिंह और उनके दो साथियों सुखदेव और राजगुरु के साथ फंसी पर चढ़ा दिया था. ८ अप्रैल १९२९ को भगत सिंह ने बटुकेश्वर दत्त के साथ मिलकर दिल्ली अस्सेम्बली मैं एक बम्ब फोड़ा, पर्चे अस्सेम्बली में फेंके, इन्कलाब जिंदाबाद के नारे लगाये और भागने की बजाये पुलिस को स्वयं को गिरफ्तार करने का पूरा मोका दिया. बम्ब फैकते हुए दोनों ने इस बात का ध्यान रखा था की इससे किसी की जान माल का नुक्सान न हो. भगत सिंह का उद्देश्य कोई सनसनी फैलाना नहीं था अपितु उन्होंने सरकार तक अपनी बात पहुचने का एक मार्ग खोला था. भगत सिंह ने कहा था बहरी सरकार को सुनाने के लिए धमाके की जरूरत होती है. अस्सेम्बली मैं फूटा यह बम्ब वही धमाका था.
भगत सिंह भावावेश में बने कोई साधारण क्रांतिकारी नहीं थे. उन्हें राष्ट्र भक्ति का संस्कार अपने परिवार से मिला था. बाद में आप हिन्दुस्तान रेपुब्लिकान एस्सोसिशन से जुड़े जिसमें पंडित रामप्रसाद बिस्मिल, अशफाकुल्लाह खान, चन्द्रशेकर आजाद, लाला रोशन लाल जैसे महान विचारक और क्रांतिकारी थे.
अस्सेम्बली मैं बम्ब फोड़ कर भगत सिंह रातों रात चर्चा मैं आ गए. देश का हर व्यक्ति उनके बारें मैं अधिक से अधिक जानना चाहता था. भगत सिंह ने इस बात का पूरा फायदा उठाया. वो सरकार के झुके नहीं और उन्होंने अपने मुकदमे की सुनवाई के दोरान उपने क्रांतिकारी विचारों का सफलतापूर्वक प्रचार किया. भगत सिंह ने अपने मुक़दमे को आज़ादी की लडाई का एक मंच बना दिया. भगत सिंह की बोद्धिक क्षमता के आगे ब्रिटिश सरकार पस्त हो गयी थी. भगत सिंह के विचारों और उनकी अद्भुत बोद्धिक क्षमता ने देश के युवाओं में ब्रिटिश सरकार के विरुद्ध लड़ने का नया जोश पैदा कर दिया था. सरकार इन क्रांतिकारियों से इतना दर गयी थी की इन्हें सुनवाई की लिए अदालत में ही पेश करना बंद कर दिया. और आनन फानन में मृतु दंड दे दिया.
२३ मार्च को इन्हें फांसी लगा दी गयी. परन्तु भगत सिंह जिस उद्देश्य के लिए लडे वो उन्होंने पा लिया. आज देश को उन जेसे वीरों की पुनः आवश्यकता है जो अपना सर्वस्व देश के लिए न्योशावर कर सकें. हमें आज फिर एक भगत सिंह चाहिए जो देश में पुनः राष्ट्र भक्ति का संचार करे और हमें राष्ट्र धर्म का पालन करना सिखाये.
राष्ट्र के इन महान सपूतों को मेरा शत शत नमन.
Monday, March 22, 2010
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1 comment:
मेरा भी शत-शत नमन.
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