मायावती की माया अपरम्पार. मायावती देश की एकमात्र ऐसे नेता है जो अपने नाम को चरितार्थ करने मैं सबसे आगे हैं. शायद मायावती का नामकरण करने वालों ने सपने मैं भी नहीं सोचो होगा की एक दिन मायावती सचमुच मैं इतनी माया एकत्र कर लेंगी. नेताओं पर भ्रस्ताचार के आरोप लगाना एक सामान्य सी बात हो गयी है. संसद मैं और उसके बाहर सेंकडों ऐसे नेता हैं जिन्होंने अपने राजनैतिक कद का लाभ उठा कर अकूत संपत्ति बना ली है. परन्तु किसी मैं भी इतनी हिम्मत नहीं है की वह अपनी इस स्याह संपत्ति का प्रदर्शन इतनी बेशर्मी से कर सके जैसा सुश्री मायावती जी ने किया है.
मायावती हमेशा से ही धन के प्रति आकर्षित रही हैं. और अपनी इस आकांक्षा को उन्होंने कभी भी छुपाया नहीं है. 15 मार्च २०१० को लखनऊ मैं उन्हें १००० के नोटों से बनी माला पहनाई गयी जिसकी कीमत करोड़ों मैं है. सारे देश मैं बवाल मच गया. किसी को भी ऐसी महँगी माला पसंद नहीं आई सारा देश जहाँ अभी मायावती के इस कारनामे पर उनकी निंदा करने मैं व्यस्त था वहीँ मायावती ने आज यानि १७ मार्च २०१० को एक और ऐसे ही माला पहन ली जिसकी कीमत १८ लाख रूपये बताई जा रही है. मायावती को पहली बार इतनी धनराशी भेत्स्वरूप नहीं मिली है. इससे पहले भी जब जब मैडम जी का जन्दीन आया उनके चमचों ने अपने अपने विधानसभा क्षेत्र से भरी धनराशी वस्सोल कर के मैडम जी को भेट की है.
अक्सर लोग अपने नेताओं को महंगे महंगे उपहार देते हैं जिससे उनके नेता की कृपादृष्टि उन पर पढ़े. परन्तु जिस प्रकार मायावती अपने अधीनस्थों से रूपये की उगाही करती हैं वह अद्वित्य है. मायावती ऐसे राज्य की मुख्यमंत्री हैं जहाँ बहुत गरीबी है. विकास के मामले मैं यह राज्य अन्य राज्यों से कहीं दूर पिछड़ा खड़ा है. अपराध और अराजकता मैं ये देश का प्रतिनिधित्व करता है. समस्याओं से भरे उत्तर प्रदेश की मुख्यमंत्री को समस्याएँ सुलझाने से ज्यादा इस बात की फिक्र रहती है की कैसे शासन का दुर्प्रयोग करके अधिक से अधिक धन बटोरा जाये.
मायावती को शायद चर्चा मैं रहना पसंद है. बहुत से लोगों मैं यह बीमारी पाई जाती है की लोग उनके बारें मैं चर्च करें, उनका नाम दूर दूर तक पहचाना जाये और मायावती भी इसी बिमारी से ग्रसित हैं. अपने को लोगों की नजर मैं चढाने के लिए वे समय समय पर कुछ न कुछ कराती रहती है. फिर इसके लिए मुर्तिया लगवाई जाये या खुल्लम खुल्ला धन बटोरा जाये.
उत्तर प्रदेश की सरकार के पास इतने धनराशी भी नहीं है की वो दंगा पीड़ित या दुर्घताग्रस्त व्यक्तियों को सहायतार्थ कुछ धनराशी दे सकें. ऐसा नहीं है की धन बिलकुल नहीं है धन तो है परन्तु वो मोतियों मैं और मालाओं मैं लग रहा है. रैलियों मैं सरकारी धन का दुरुप्रयोग हो रहा है.
आज हमें पुः सोचना होगा की हमें देश मैं कैसे नेता चाहियें.
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