भारतीय  नव वर्ष चैत्र शुक्ल प्रतिपदा युगब्ध ५११३ विक्रमी संवत २०६८,  (तदनुसार  २ अप्रैल २०११) की हार्दिक शुभकामनाएँ. नव वर्ष हम सभी की जीवन में नया  प्रकाश और नै उर्जा लाये इश्वर से यही कामना है.
आज  हम पूरी तरह से रोमन कैलंडर के अनुरूप ही अपनी दैनिक जीवनचर्या का निर्वहन  कर रहे हैं. और मुझे इससे कोई आपत्ति भी नहीं है. परन्तु शायद हम अपने इस  महान पर्व को कही भूल से गए हैं. हम विदेशी नव वर्ष को बहुत भूम भाम से  मानते है, नए साल पर एक दुसरे को बधाई देना नहीं भूलते, नए साल का जशन  मनाते हैं, पार्टियाँ करते हैं, नाचते गाते हैं पीते और पिलाते हैं. परन्तु  जब अपना नव वर्ष आता है तो हमें याद भी नहीं रहता. यह दिन केवल इस लिए  महत्वपूर्ण नहीं है की इस दिन हम एक वर्ष पूरा करके नए वर्ष में प्रवेश  करते हैं अपितु यह दिन हमारे इतिहास का एक हिस्सा भी है. 
- आज के ही दिन ब्रह्मा जी ने सृष्टि की रचना की थी.
- भगवान् राम और महाराज युधिश्धिर का राज्यभिशेक आज के ही दिन हुआ था.
- स्वामी विवेकानंद ने आर्य समाज कि स्थापना आज के ही दिन कि थी.
- विक्रमादित्य ने शकों को परस्त किया
- महर्षि गोतम का जन्मदिवस
- संत झूलेलाल का प्रकाश पर्व
- डॉ. हेडगेवार का जन्म दिवस
- कलयुग का प्रारंभ आज कलयुग शुरू हुए ५११२ वर्ष हो जायेंगे.
  यह नववर्ष भारत के सभी हिस्सों  मैं अलग अलग नाम से मनाया जाता है. सांस्कृतिक विविधता होने के कारन और  अनेक पंचांग होने के कारन यह पर्व देश मैं अलग अलग दिन मनाया जात है परन्तु  सभी पर्व कुछ दिनों के अंतराल मैं ही मनाये जाते हैं : 
कश्मीर मैं
उगादी 
महाराष्ट्र मैं गुडी पर्व 
तमिलनाडु मैं पुथांडू 
केरल मैं विशु 
मणिपुर मैं चेइरावबा 
उड़ीसा मैं महाबिशुबा  संक्रांति 
हिमाचल प्रदेश मैं चिट्टी और बसोया 
बंगाल मैं पोहेला  बोइशाख 
पंजाब मैं बैसाखी 
बिहार और उत्तरप्रदेश मैं मकर सक्रांति 
सिन्धी समाज इस दिन को चेती चाँद के रूप मैं मानते हैं.
भारत  के प्रत्येक कोने मैं यह पर्व मनाया जाता है. हम इन पर्वों को अपनी धर्मिक  आस्था से जोड़ कर देखते है परन्तु यह भूल जाते है कि यह हमारा नव वर्ष  उत्सव है. शायद हमें आदत पद गयी है हुड दांग की ३१ दिसंबर के उत्सव और  हमारे उत्सव मैं एक विशेष भिन्नता भी है. इंग्लिश नया साल शोर शराबे,  हुडदंग, शराबखोरी और दुसरे व्यसनों के साथ माने जाता है परन्तु चैत्र मास  लगते ही सम्पूर्ण भारत मैं अध्यात्म हावी हो जाता है हम अपने नव वर्ष की  शुरुआत मंदिरों और देवस्थानों पर जाकर, सत्संग और हवन कर करते हैं. जहाँ  इंग्लिश नव वर्ष पूरी तरह भोग और विलास को समर्पित हो जाता है वहीँ हिन्दू  नव वर्ष अध्यात्म और भक्ति को. दोनों पर्वों मैं उत्साह चरम पर होता है पर  दोनों जगह उत्साह और आनंद मैं फर्क होता है. जहाँ इंग्लिश नव वर्ष हमें भोग  की और ले जाता है वहीँ हिन्दू नववर्ष हमें परमार्थ का रास्ता दिखाता है.
पर्व कोई भी उसे मानाने से किसी को कोई ऐतराज नहीं होना चाहिए परन्तु अपना भूल कर दूसरो के पीछे भागना क्या उचित है?  

 
 

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