देश के सारे पत्रकार और मेरे जैसे बेकार सभी लोग अयोध्या मुद्दे पर इलाहाबाद उच्च न्यायलय के फैसले पर अपनी अपनी राय दे रहे हैं. बहुत से तो दावा भी करने लग गए है की उन्होंने पूरा फैसला पढ़ लिया है. खैर जो भी फैसला है वो कितना न्यायसंगत है ये तो सिर्फ कानून जानने वाले ही बता सकते हैं. परन्तु मुझ जैसे लोग इसे एक समझोते के रूप मैं देखते हैं. इस फैसले से जहाँ हिन्दू पक्ष खुश है वहीँ मुस्लिम पक्ष नाखुश.
इस मुक़दमे का मुख्या झगड़ा क्या है, हिन्दू उस साड़ी जमीन को अपनी बताते हैं और मुस्लिम अपनी. ६० साल तक उस जमीन के लिए मुकदमा चलता रहा. और दोनों पक्ष उस जगह पर अपना दावा करते रहे. पर जब फैसला आया की जगह का बटवारा कर के इसे ३ भागों मैं बात दिया जाए तो हिन्दू समाज ने इस बटवारे को भी स्वीकार कर लिया. परन्तु शायद हमारे मुस्लिम भाई और उनके नाम पर अपनी राजनीति चमकाने वालों को ये समझोता भी गवारा नहीं. उलटे समय समय पर इंदु भावनाओ को भड़काया जा रहा है.
हिन्दू समाज आज आगे बढ़ कर एक समझोते के लिए तैयार है पर मुस्लिम समाज और उस समाज के पैरोकार इस मुद्दे पर कोई भी सम्जोप्ता नहीं होने देना चाहते हैं. कल कहीं ऐसा न हो की आज हिन्दू १/३ जमीन देने पर भी राजी है और कल वो उस पूरी जमीन पर एक भव्य मंदिर खड़ा कर दे.
Thursday, October 7, 2010
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