अक्टूबर मैं राष्ट्रकुल खेल होने वाले हैं. यह सम्मान की बात है की दिल्ली को इसकी मेजबानी का अवसर मिला है. राष्ट्रकुल खेल होने वाले हैं, विभिन्न देशों के खिलाडी तथा अन्य विदेशी मेहमान आएंगे एशियाड के बाद यह दिल्ली के लिए पहला मोका है जब कोई अन्तराष्ट्रीय स्तर का आयोजन दिल्ली मैं होने जा रहा है. दिल्ली को इस आयोजन के लिए तैयार किया जा रहा है. खेल नजदीक हैं पर हमारी तैयारियां अभी पूरी नहीं हुई हैं. इन खेलों के लिए दिल्ली को अन्तराष्ट्रीय शहर बनने की कवायद चल रही है और यदि सब कुछ सही रहा तो दिल्ली वाकई मैं एक अन्तराष्ट्रीय सुविधाओं से युक्त शहर बन जाएगी. दिल्ली को अन्तराष्ट्रीय स्तर का शहर बनने के लिए दिल्ली की शक्ल सूरत मैं कई बदलाव किये जा रहे हैं, यातायात व्यवस्था, साफ़ सफाई, अन्तराष्ट्रीय स्तर के स्टेडियम और होटल्स, उन्नत संचार प्रणाली, आदि आदि,
क्या ये विकास दिल्ली वालों का हक नहीं है, ये सुविधाएँ और विकास आज सिर्फ राष्ट्रकुल खेलों के नाम पर होने जा रहे हैं. परन्तु क्या दिल्ली जो की भारत की राजधानी भी है इसमें इस विकास के लिए हमें राष्ट्रकुल खेलों का इंतज़ार था. आज दिल्ली मैं जो भी बदलाव हो रहे हैं या प्रस्तावित हैं वो सिर्फ विदेशियों के लिए ही हैं. जो भी विकास होगा क्या वह दिल्लीवासियों का अधिकार नहीं है. देश को स्वतंत्र हुए ६३ साल हो गए हैं. परन्तु कभी किसी ने यह नहीं सोचा की दिल्ली का विकास किया जाये. दिल्ली वालों का विकास किया जाये. क्या हम सिर्फ तभी जागते हैं जब समस्या से हमें शर्मिंदगी महसूस होने लगे. दिल्ली देश की राजधानी होते हुए भी विकास को तरसती रही. यह तो भला हो की ये खेल हो रहे हैं अन्यथा दिल्ली मैं कोई सुधार होता ही नहीं.
खैर जो भी सुधर हो रहे हैं वो सिर्फ विदेशियों को रिझाने के लिए ही हो रहे हैं. दिल्लीवालों के लिए नहीं. अब चूंकि विदेशी मेहमान तो कुछ दिन बाद चले जायेंगे और उसके बाद दिल्लीवालों को ये सुविधाएँ भोगने का मोका मिलेगा. पर क्या वाकई मैं दिल्ली का विकास हो रहा है. ६३ साल मैं दिल्ली मैं विकास के नाम पर कुछ नहीं हुआ. आज भी दिल्ली मैं अनेक ऐसे क्षेत्र हैं जहाँ पर पेयजल की कोई व्यवस्था नहीं है. सरकारों ने कभी भी दिल्ली को बसाने की और कोई विशेष ध्यान नहीं दिया.डी डी ए जिस पर दिल्ली वालों के लिए आवास मुहैया करने की जिम्मेदारी है वो कितनी खूबी से अपना काम कर रही इस विषय मैं तो जो भी कहा जाये वो कम ही होगा. डी डी ए के निक्कमेपण का सबूत इससे ज्यादा क्या होगे की ३० साल पहले रोहिणी आवास योजना के अंतर्गत जिन लोगों का आवास देने का वायदा किया गया था उनमे से अनेकों को आज तक डी डी ए कोई आवास प्रदान नहीं कर पाई. डी डी ए के इस निक्कमे पण के कारन ही राज्य मैं जगह जगह अवैध कालोनियां बन गयी. सरकार व्यवसाय हेतु समुचित दुकानों और बाजारों का विकास नहीं कर पाई जिस कारन रिहाईशी इलाकों मैं दुकाने बन गयी. सीधी बात है यदि सरकार के भरोसे रहते तो भूखे मर जाते. यातायात व्यवस्था और परिवहन व्यवस्था इतनी बढ़िया है की कुछ भी कहना बेकार है.
कितनी शर्मनाक बात है की दिल्ली जो की देश की राजधानी है वहां पर इतनी भी सुविदाह्यें नहीं हैं की कोई अंतरष्ट्रीय स्तर का आयोजन किया जा सके. आज दिल्ली वालों को जो सुविधाएँ मिलेंगी वो इस लिय नहीं की दिल्लिवालें भो इसके हकदार हैं अपितु इसलिए की दिल्ली को विदेशियों के सामने एक अन्तराष्ट्रीय स्तर का शहर दिखाना है.
यदि दिल्ली का विकास लगातार समयानुसार होता तो आज हमें इतनी मशक्कत नहीं करनी पड़ती. जबसे दिल्ली को मेजबानी मिली है दिल्ली सरकार को अपनी जेब भरने का भरपूर मोका मिल गया. दिल्ली के सुधर के लिए जितने कार्य प्रस्तावित हैं उनके लिए सरकार को बहुत समय मिला. यदि सरकार चाहती तो इतने समय और इतने खर्च में दिल्ली को कम से कम १० बार रस्त्रकुल खेलों के लिए तैयार कर सकती थी. सरकार को जनता का भरपूर सहयोग मिल रहा है. खेलों के नाम पर सरकार रोज नए टेक्स लगा रही है और दिल्ली वासी इसे भरी मन से झेलते जा रहे हैं. हजारों करोड़ डकार लेने के बाद भी सरकार के पास धन नहीं है. दिल्ली सरकार भी क्या करे ऐसे मोके रोज रोज तो मिलते नहीं.
आज दिल्ली के विकास कि बात हो रही है तो सिर्फ इसलिए कि दिल्ली में खेल होने हैं. क्या हमें अपने अधिकारों के लिए अन्तराष्ट्रीय खेलों का ही इंतज़ार करना होगा. खेल होंगे तो सुधर होगा अन्यथा नहीं. और सुधर भी उन्ही स्थानों पर होगा जहाँ विदेशी जा सकते है या जायेंगे.
चलो जी भगवान् करे देश के हर शहर में राष्ट्रकुल खेल हों ताकि उनके नाम पर थोडा बहुत विकास हो जाये वर्ना हमें विकास कि क्या जरूरत है.
1 comment:
kafi achha likha hai
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