Saturday, May 15, 2010

क्या गृहणी होना शर्मनाक है?

क्या गृहणी होना शर्मनाक है? आज शहरों में जहाँ लगभग सभी गृहणिया पढ़ी लिखी हैं. वहां अक्सर ऐसे सवाल उठते हैं. गृहणी होना किसी भी प्रकार से स्त्रियों के लिए कोई सामाजिक या यूँ कहे की आधुनिक सोच रकने वालों के लिए महत्वहीन ह गया है. पढ़ी लिखी होने के बाद भी क्या कर रही हो, एक चाय का विज्ञापन आता है जिसमे दो सहेलियां मिलती हैं एक बैंक मैं काम करती है दूसरी गृहणी है, गृहणी को अपने गृहणी होने पर इतना अफ़सोस है की वो अपनी सहेली से कहती है की बस एक हाउस वाइफ हूँ.उसके ये शब्द उसके अन्दर पनप रही हीन भावना को दर्शाता है. 
अक्सर देखा जाता है की गृहणी को अन्य काम काजी महिलाओं की अपेक्षा हलके में लिया जाता है. मैं किसी भी प्रकार से महिलाओं के काम करने का विरोधी नहीं हूँ. लेकिन मैं इस बात का पुरजोर विरोध करता हूँ की महिलाओं की आजादी के नाम पर उन्हें नौकरी करने के लिए उकसाया जाये. महिलाओं को आत्म्लिर्भर होना चाहिए, पढना लिखना चाहिए, महिलाएं किसी भी क्षेत्र में पुरुषों से कम नहीं हैं और यह बात महिलाओं ने समय समय पर साबित भी की है. लेकिन मैं नौकरी सिर्फ इसलिए करूंगी की मुझ पर हाउस वाइफ का ठप्पा न लग जाये. आज बहुत सी औरतें सिर्फ इसलिए नौकरी करना चाहती हैं क्यूंकि गृहणी होने मैं उन्हें शर्म महसूस हो रही है. आज आत्मनिर्भरता, आजादी, और समानता का अर्थ है की महिलाएं काम करें और गृहणी का अर्थ हैं पति और परिवार की दासी.
क्या वाकई हम महिला उत्थान या समरसता का सही अर्थ जान पा रहे हैं. एक काम काजी महिला सिर्फ काम काजी नहीं है परिवार उससे एक सम्पूर्ण गृहणी होने की भी उम्मीद रखता है. एक गृहणी किसी भी प्रकार से कम कर नहीं आंकी जा सकती. परिवार संभालना और बच्चों में संस्कार देना ये किसी भी प्रकार से छोटे काम नहीं हैं. गृहणी होने का अर्थ यह नहीं है की महिला पुरुष से कम है या उसकी दासी है. महिला पूरी तरह से पुरुष के सामान है. क्या पढ़ाई या शिक्षा का अर्थ केवल अस्ची नौकरी पाना है. और क्या नौकरी करने वाली महिला को परिवार मैं पुरुष अपने सामान दर्जा दे रहा है.